बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा और उत्पीड़न: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- ऐसे अपराध मानवता और समाज के खिलाफ, इसे बेहद गंभीरता से लिया जाये
सुप्रीम कोर्ट ने यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के संरक्षण कानून (पॉक्सो) का उल्लेख करते हुए कहा कि यौन उत्पीड़न मामलों में उपयुक्त दंड दिया जाना चाहिए। समाज में सख्त संदेश जाना चाहिए कि यदि कोई भी यौन उत्पीड़न या पोर्नोग्राफी के लिए बच्चों के उपयोग का अपराध करता है, तो उसके प्रति कोई उदारता नहीं देखी जा रही है ।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बच्चों के खिलाफ यौन हिंसा और उत्पीड़न को बेहद गंभीरता से लिया जाना चाहिए। ऐसे सभी कृत्यों से सख्ती से निपटा जाना चाहिए, क्योंकि यह मानवता और समाज के खिलाफ अपराध है। शीर्ष अदालत ने कहा कि पॉक्सो के तहत अपराध करने वालों के साथ काई रियायत नहीं बरती जानी चाहिए।
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने अपने फैसले में कहा, बच्चे हमारे देश के बहुमूल्य मानव संसाधन हैं। वे देश का भविष्य हैं, लेकिन दुर्भाग्य से हमारे देश में बच्ची बहुत कमजोर स्थिति में है। पीठ ने यौन अपराधों के खिलाफ बच्चों के संरक्षण कानून (पॉक्सो) का उल्लेख करते हुए कहा, यौन उत्पीड़न मामलों में उपयुक्त दंड दिया जाना चाहिए। समाज में सख्त संदेश जाना चाहिए कि यदि कोई भी यौन उत्पीड़न या पोर्नोग्राफी के लिए बच्चों के उपयोग का अपराध करता है, तो उसके प्रति कोई उदारता नहीं दिखाई जाएगी। शीर्ष अदालत ने कहा, यौन सुख के लिए बच्चों को भी नहीं बख्शा जाता है।
शहर हो या गांव बच्चियों को खास सुरक्षा की जरूरत
बच्चों के शोषण के विभिन्न तरीके हैं, इसलिए खासकर बालिकाओं को पूर्ण सुरक्षा की आवश्यकता है। शहरी हो या ग्रामीण क्षेत्र, बच्चियों की अधिक देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता है।
75 वर्षीय नवाबुद्दीन की सजा बरकरार
शीर्ष अदालत ने पॉक्सो अधिनियम की धारा-3 के तहत चार साल के बच्चे के साथ गंदी हरकत करने के लिए 75 वर्षीय नवाबुद्दीन की सजा को बरकरार रखा है। बच्ची से दुष्कर्म की कोशिश करते वक्त आरोपी पकड़ा गया था। हालांकि दोषी की उम्र को देखते हुए अदालत ने उसकी उम्रकैद की सजा को घटाकर 15 वर्ष कैद में तब्दील कर दिया। यह वारदात 17 जून, 2016 को उत्तराखंड में हुई थी।