मर्दवादी आक्रामकता से ग्रस्त हैं भारतीय समाचार चैनलों के 85 फीसदी टॉक शो 

द नेटवर्क ऑफ विमेन इन मीडिया इंडिया ने 12 भाषाओं के 31 समाचार चैनलों पर प्रसारित होने वाले 185 न्यूज़ और टॉक शो का हफ्तेभर तक अध्ययन करने के बाद एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कहा गया है कि मर्दवादी आक्रामकता केवल पुरुष एंकर द्वारा नहीं दिखाई जाती, अक्सर महिला एंकर भी समान व्यवहार करती हैं.

मीडिया के पेशे में काम कर रहीं महिलाओं के लिए काम करने वाले एक फोरम द नेटवर्क ऑफ विमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई) के एक अध्ययन में सामने आया है कि टीवी के भारतीय समाचार चैनलों पर प्रसारित होने वाले वाले 85 फीसदी टॉक शो में मर्दवादी आक्रामकता (Masculine Aggression) दिखाई देती है.

एनडब्ल्यूएमआई के वॉलिंटियर्स के एक समूह ने सितंबर 2021 में 12 भाषाओं के 31 समाचार चैनलों पर प्रसारित होने वाले 185 समाचार कार्यक्रमों और टॉक शो का एक हफ्ते तक अध्ययन किया था. अध्ययन का विषय था कि भारत मे टीवी पर प्रसारित होने वाले समाचारों को प्रभुत्व भरा रवैया (Dominance) और टॉक्सिक मर्दवाद  (Toxic masculinity) कितना प्रभावित करते हैं.

अध्ययन में पाया गया कि समाचार एंकर का रवैया इस बात पर निर्भर करता है कि वे समाचार बुलेटिन पढ़ रहे हैं या किसी टॉक शो (परिचर्चा) की एंकरिंग कर रहे हैं.

अध्ययन बताता है कि इस दौरान सभी समाचार कार्यक्रमों के 50 फीसदी मामलों में आक्रामकता देखी गई, जबकि टॉक शो के मामलों में यह आक्रामकता बढ़ गई और 85 प्रतिशत कार्यक्रमों में आक्रामकता देखी गई.

अध्ययन बताता है कि समाचार आमतौर पर अपेक्षाकृत सीधे और सामान्य तरीके से प्रस्तुत किए जाते हैं, लेकिन टॉक शो और बहस के पैनल में एंकर, होस्ट और मेहमान जिस तरह का व्यवहार करते हैं उसे आक्रामक मर्दवाद के तौर पर देखा जा सकता है.

अध्ययन बताता है कि जिस चर्चा में कई मेहमान शामिल होते हैं, उसमें और भी अधिक मर्दवादी व्यवहार निकलकर सामने आता है.

रिपोर्ट में यह भी स्पष्ट किया गया है कि मर्दवादी आक्रामकता केवल पुरुष एंकर द्वारा ही नहीं दिखाई जाती है, अक्सर महिला एंकर भी समान व्यवहार करती नजर आती हैं. हालांकि, पुरुषों द्वारा संचालित कार्यक्रमों में महिलाओं द्वारा संचालित कार्यक्रमों की अपेक्षा अधिक आक्रामक मर्दाना व्यवहार होता है.

रिपोर्ट में दिए आंकड़े बताते हैं कि पुरुषों द्वारा संचालित कार्यक्रम में पैनल के सदस्यों ने एक-दूसरे को 54.55 फीसदी मौकों पर चुनौती दी, जबकि महिलाओं के कार्यक्रम में यह आंकड़ा 12.07 फीसदी का रहा. इसे साथ ही महिला-संचालित पैनल (15.52%) की तुलना में पुरुष-संचालित पैनलों (48.75%) में वक्ताओं द्वारा एक-दूसरे पर अधिक चीखना-चिल्लाना भी देखा गया.

रिपोर्ट बताती है कि आक्रामकता की सबसे आम अभिव्यक्ति बोलने के लहज़े (76.76%) में थी, जबकि आक्रामक साउंड और विजुअल इफैक्ट अक्सर सहायक भूमिका (60%) में रहे.

अध्ययन के दौरान आक्रामकता के शाब्दिक और अन्य संकेतकों और क्रोध, प्रभुत्व, सेक्सिज़्म (लिंग के आधार पर भेदभाव) और सकारात्मक व्यवहार पर नजर रखी गई थी.

रिपोर्ट में बताया गया है कि अलग-अलग भाषाओं के कार्यक्रमों में कुछ अंतर देखे गए.

जैसे कि इस अध्ययन के लिए मॉनिटर किए गए टीवी चैनलों की संख्या के मामले में अंग्रेजी भाषा के चैनल सूची में सबसे ऊपर थे. अंग्रेजी मीडिया के कुल 19 फीसदी सैंपल लिए गए. अंग्रेजी मीडिया में आक्रामकता का स्तर सर्वाधिक पाया गया. कुल घटनाओं का 24.71 प्रतिशत इसमें देखा गया.

गुजराती भाषी चैनलों के सैंपल की संख्या मॉनिटरिंग के मामले में तीसरे नंबर (10%) पर रही, लेकिन कुल मामलों के 15.93% यहां मिले.

जहां तक डोमिनैंस (Dominance) या प्रभुत्व जमाने की बात आई, इसमें हिंदी चैनल शीर्ष पर रहे. ऐसे कुल मामलों के 34 फीसदी यहां मिले, इसके बाद अंग्रेजी का नंबर आया, जहां 22.93 फीसदी मामले इस तरह के व्यवहार के थे.

यहां जिक्र करना जरूरी है कि हिंदी मीडिया के केवल दस फीसदी सैंपल लिए गए थे. दूसरे नंबर पर मॉनिटर की गई भाषा बांग्ला थी, इसके 14% प्रतिशत सैंपल लिए गए, जिसमें डोमिनैंस के सबसे कम उदाहरण (6.4) पाए गए. तमिल कार्यक्रमों के केवल 5 प्रतिशत सैंपल लिए गए, लेकिन इनमें सेक्सिज़्म के सबसे अधिक 38.70% मामले देखे गए.

बहरहाल, रिपोर्ट के लेखकों का मानना है कि सकारात्मक बदलावों की जरूरत है, जिन्हें लेकर उन्होंने कुछ सिफारिशें भी की हैं. जैसे कि माहौल को अधिक पेशेवर बनाना, एंकर और रिपोर्टर को संवेदनशील बनाना व प्रशिक्षण देना और कार्यक्रम के हितधारकों की जिम्मेदारी तय करना आदि.