मेडिकल कॉलेज के छात्रावास से आंबेडकर का नाम मिटाए जाने का विवाद पुलिस तक पहुंचा
मध्य प्रदेश में इंदौर के शासकीय महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय के छात्रावास के एक ब्लॉक से संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर का नाम मिटाए जाने का आरोप लगाते हुए कुछ आक्रोशित संगठनों ने बीते बुधवार को संयोगितागंज पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई है.
भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष विनोद यादव आंबेडकर ने बताया कि भीम आर्मी और दो अन्य संगठनों की ओर से संयुक्त तौर पर दी गई शिकायत में आरोप लगाया गया है कि रेसीडेंसी क्षेत्र स्थित चिकित्सा महाविद्यालय छात्रावास के ब्लॉक नंबर-दो से आंबेडकर का नाम बीते 18 जनवरी को सफेद रंग पोतकर मिटा दिया गया था.
उन्होंने बताया कि शिकायत में यह भी कहा गया है कि जब मौके पर पहुंचे भीम आर्मी और अन्य संगठनों के नेताओं ने इस ब्लॉक पर दोबारा आंबेडकर का नाम लिखवाया, तो वहां मौजूद कुछ विद्यार्थियों ने इसका कथित रूप से प्रतिकार किया था.
भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष ने बताया, ‘हमारी शिकायत में मांग की गई है कि चिकित्सा महाविद्यालय छात्रावास के ब्लॉक से आंबेडकर का नाम मिटाने के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ राजद्रोह के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की जाए.’
उधर, संयोगितागंज पुलिस थाने के प्रभारी योगेश तोमर ने शिकायत मिलने की पुष्टि की और बताया कि फिलहाल इस पर कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है.
इस बीच, चिकित्सा महाविद्यालय के डीन डॉ. संजय दीक्षित का दावा है कि छात्रावास परिसर में जारी पुताई के चलते ब्लॉक नंबर-दो पर सफेद रंग पोते जाने से वहां आंबेडकर का नाम मिट गया था.
उन्होंने बताया कि वहां बाद में नए सिरे से दोबारा आंबेडकर का नाम लिख दिया गया था.
उधर, भीम आर्मी के जिलाध्यक्ष ने डीन के दावे को सरासर गलत बताते हुए कहा कि घटना के वक्त चिकित्सा महाविद्यालय छात्रावास में कोई पुताई नहीं चल रही थी.
गौरतलब है कि ‘दलितों के मसीहा’ के रूप में मशहूर आंबेडकर का जन्म इंदौर के नजदीक महू में 14 अप्रैल, 1891 को हुआ था.
छात्रों के दो गुटों के बीच नामकरण को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था. इन्हीं में से एक गुट ने दूसरे गुट के छात्रों पर नाम हटाकर सफेद रंग पुतवाने का आरोप लगाया है.
मध्य प्रदेश अनुसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (AJJAKS – अजाक्स) के करण भगत ने कहा, ‘हॉस्टल पर लिखे नाम को मिटाने की बात 15 दिन से चल रही थी. हम पहले ही कह चुके थे कि नाम नहीं मिटाया जाए. इस बीच फिर जानकारी मिली कि नाम मिटाने के निर्देश दिए हैं. वहां छात्रों का एक समूह किसी अन्य का नाम लिखना चाहता था.’
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