एलोपैथी के ख़िलाफ़ बयान को लेकर डॉक्टरों की याचिका पर रामदेव को नोटिस
नई दिल्ली: दिल्ली उच्च न्यायालय ने योगगुरु रामदेव को एलोपैथी के खिलाफ कथित रूप से गलत जानकारी फैलाने के मामले में कई चिकित्सक संगठनों द्वारा दाखिल मुकदमे में बुधवार को समन जारी किया. जस्टिस सी. हरिशंकर ने रामदेव को वाद पर जवाब दाखिल करने के लिए चार सप्ताह का समय दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि वह रामदेव के खिलाफ वाद में आरोपों के गुण-दोष पर कोई राय व्यक्त नहीं कर रहे और किसी प्रकार की राहत देने के बारे में बाद में विचार किया जाएगा.
नागरिक प्रक्रिया संहिता की धारा 91 के तहत सार्वजनिक उपद्रव या अन्य गलत कार्य, जनता को प्रभावित करने या प्रभावित करने की संभावना का आरोप लगाते हुए एक मुकदमा केवल एक महाधिवक्ता द्वारा शुरू किया जा सकता है.
जस्टिस हरिशंकर ने रामदेव के वकील राजीव नायर से कहा, ‘मैंने वीडियो क्लिप (रामदेव के) देखे हैं. वीडियो क्लिप देखकर लगता है कि आपके मुवक्किल एलोपैथी उपचार प्रोटोकॉल पर उपहास कर रहे हैं. उन्होंने लोगों को स्टेरॉइड की सलाह देने और अस्पताल जाने वाले लोगों तक का उपहास उड़ाया है. क्लिप देखकर यह निश्चित रूप से वाद दर्ज करने का मामला है.’
वरिष्ठ अधिवक्ता नायर ने कहा कि उन्हें मामले में समन जारी होने पर कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन उन्होंने आरोपों का विरोध किया.
नायर ने अदालत से अनुरोध किया, ‘वाद के तीन हिस्से हैं. कोरोनिल, मानहानि और टीकाकरण के खिलाफ असमंजस. अदालत केवल मानहानि के मामले में ही नोटिस जारी कर सकती है.’
न्यायाधीश ने कहा, ‘मैं कोई आदेश जारी नहीं कर रहा. आप अपने लिखित बयान दाखिल कीजिए. कहिए कि कोई मामला नहीं बनता.’
रामदेव के अलावा आचार्य बालकृष्ण और पंतजलि आयुर्वेद को भी मामले में समन जारी कर जवाब देने को कहा गया है.
अदालत ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म गूगल, फेसबुक और ट्विटर को भी नोटिस जारी किए.
ऋषिकेश, पटना और भुवनेश्वर के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के तीन रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के साथ-साथ चंडीगढ़ पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन, पंजाब के रेजिडेंट डॉक्टर्स संघ; लाला लाजपत राय मेमोरियल मेडिकल कॉलेज, मेरठ के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन और तेलंगाना जूनियर डॉक्टर्स एसोसिएशन ने इस साल की शुरुआत में उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी.
उन्होंने आरोप लगाया कि रामदेव जनता को गुमराह कर रहे थे और गलत तरीके से यह पेश कर रहे थे कि एलोपैथी कोविड-19 से संक्रमित कई लोगों की मौत के लिए जिम्मेदार थी. उन्होंने कथित तौर कहा था कि एलोपैथिक डॉक्टर मरीजों की मौत का कारण बन रहे थे.
मंगलवार को हुई सुनवाई के दौरान इस संगठनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अखिल सिब्बल ने कहा कि एक महामारी के बीच रामदेव ने कोरोनिल से कोविड-19 के इलाज के निराधार दावे किए थे, जबकि उसे केवल ‘प्रतिरोधक क्षमता’ बढ़ाने वाली दवा के रूप में लाइसेंस दिया गया था.
उन्होंने दावा किया कि रामदेव के बयान यथार्थ पर आधारित नहीं थे, बल्कि ये विपणन और व्यावसायिक उपयोग के नजरिये से दिए गए थे.
अधिवक्ता हर्षवर्धन कोटला के माध्यम से दायर अपनी याचिका में, चिकित्सक संघों ने दलील दी है कि रामदेव अत्यधिक प्रभावशाली व्यक्ति हैं और वह न केवल एलोपैथिक उपचार, बल्कि कोविड-19 रोधी टीके के बारे में भी आम जनता के मन में संदेह पैदा कर रहे थे.
याचिका में आरोप लगाया गया है कि गलत सूचना फैलाना कुछ और नहीं, बल्कि रामदेव की अपने उत्पाद की बिक्री बढ़ाने के लिए एक विज्ञापन और विपणन रणनीति थी. याचिका में अन्य प्रतिवादियों में आचार्य बालकृष्ण और पतंजलि आयुर्वेद शामिल हैं.
अदालत ने एलोपैथिक दवाओं के खिलाफ कथित बयानों और पतंजलि के कोरोनिल किट के दावों के संबंध में दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन की याचिका पर गत तीन जून को रामदेव को समन जारी किया था.
मालूम हो कि बीते जून महीने में योग गुरु रामदेव ने कोविड-19 महामारी के दौरान एलोपैथी इलाज के खिलाफ की गई उनकी कथित टिप्पणियों को लेकर भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) द्वारा बिहार और छत्तीसगढ़ में दर्ज कराए गए कई मामलों पर रोक के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी.
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