शौक से बढ़कर हैं साँसें
सुबह जब भी हम अखबार उठाकर देखते हैं तो उसमें एक ना एक खबर दुर्घटना को लेकर जरूर होती है। ये दुर्घटनाएं चाहे कहीं भी हों, इनसे हमेशा जनहानि ही होती है। आज मैं अपने इस आलेख के माध्यम से आप सभी को एक मैसेज देना चाहती हूँ। वो मैसेज है दुर्घटनाओं के दौरान पीड़ित की मदद करने की अपेक्षा उसका वीडियो बनाना। कुछ लोग ऐसे आपातकालीन समय में पीड़ित की मदद करने की अपेक्षा उसे अपने मोबाइल में शूट करते हैं और फिर उसी वीडियो को सोशल साइट पर डालकर वायरल कर देते हैं।
अब सोचने वाली बात यह है कि उस समय आपका वीडियो बनाना ज्यादा उचित है या दुर्घटना में तड़पती हुई जिंदगी की मदद करना। इस बात को हम सभी जानते हैं कि उस समय की मदद से ना केवल आप सामने वाले की जिंदगी बचा रहे हैं बल्कि एक जिम्मेदार नागरिक होने का कभी सुविधाएं भी जानलेवा हो जाती है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मोबाइल है। हम चाहें तो कुछ हद तक इस तरह की दुर्घटनाओं पर अंकुश लगा सकते हैं जैसे ट्रैफिक रूल्स फॉलो करके आज अगर हम देखें तो हर आदमी जिंदगी की जद्दोजहद में भाग रहा है और इसी भागदौड़ में वो कुछ ऐसी गलतियां कर बैठता है जो दुर्घटनाओं की वजह बन जाती है।
इस विषय पर आज मैंने अपने आसपास कुछ लोगों से चर्चा को उनके विचार जानें। कुछ ने कहा कि वो मदद करते हैं लेकिन कुछ लोगों के जवाब ने मुझे अचंभित कर दिया ये कहकर कि कौन पुलिस वुलिस के चक्करों में पड़े यहाँ मैं आपको बता दूं कि 2015 में भारत सरकार ने उन नागरिकों को रक्षा के लिये कुछ नियमावली जारी की है जो सड़क दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की मदद के लिए आगे आते हैं। नियमावली देश के सर्वोच्च न्यायालय के अक्टूबर 2014 में दिए आदेश के अनुसार दी गयी थी। अब केंद्रीय सरकार ने मदद करने वाले इन नागरिकों की जांच प्रक्रिया के लिए भी कुछ नियम जारी किये है जिसे स्टैण्डर्ड ऑपरेटिंग प्रॉसीजर (एस ओ पी) कहा जा रहा है।
जांच के दौरान मदद करने वाले नागरिकों के साथ पुलिस को कैसा बर्ताव करना है इस बात का ब्यौरा ‘एस ओ पी’ देता है। मदद करने वाले नागरिक के साथ इज्जत के साथ पेश आना होगा और धर्म, जाति, लिंग या किसी भी आधार पर उनसे भेदभाव नहीं किया जाएगा। चश्मदीद के अलावा यदि कोई भी सड़क दुर्घटना की जानकारी पुलिस कंट्रोल रूम को फोन पर देता है तो उसे अपना नाम पता और फोन नंबर गुप्त रखने का अधिकार है।
घटनास्थल पर पहुँचने पर पुलिस अधिकारी मदद करने वाले नागरिक को उनका नाम, पता तथा फोन नंबर बताने को मजबूर नहीं कर सकते। कोई भी पुलिस अधिकारी या कोई भी दूसरा व्यक्ति दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति की मदद करने वाले को गवाह बनने के लिए जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता। गवाह बनने या न बनने का फैसला करने का अधिकार सिर्फ और सिर्फ उस मदद करने वाले का ही होगा। अब जब हमारी सरकार ने इस मामले की गंभीरता को लेकर एक कदम आगे बढ़ाया है तो फिर हम क्यों नहीं? आज हम एक प्रण करें कि जब भी हमारे आसपास किसी भी तरह की कोई भी घटना घटित होती है तो हम एक जिम्मेदार नागरिक की भूमिका अदा कर शासन व प्रशासन की मदद करेंगे।
लेखिका- ममता भदौरिया
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