जबरन धर्म परिवर्तन: ज़मानत देने से कोर्ट का इनकार, कहा- धार्मिक कट्टरता के लिए जगह नहीं

नई दिल्ली: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने शादी के लिए 21 वर्षीय युवती का अपहरण करने और गैर कानूनी तरीके से धर्म परिवर्तन कराने के आरोपी एक शादीशुदा व्यक्ति की जमानत अर्जी खारिज कर दी. जस्टिस शेखर कुमार यादव ने उत्तर प्रदेश के एटा निवासी जावेद उर्फ जाबिद अंसारी द्वारा दायर अर्जी यह कहते हुए खारिज कर दी कि भारत के संविधान का अनुच्छेद 15 (1) धर्म परिवर्तन की अनुमति देता है, लेकिन यह बलपूर्वक धर्म परिवर्तन की अनुमति नहीं देता. इस बात पर जोर देते हुए कि हमारे देश में धार्मिक कट्टरता, लालच और भय के लिए कोई जगह नहीं है, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि यदि अपमान के चलते बहुसंख्यक समाज के किसी व्यक्ति को अपना धर्म बदलना पड़ता है, तो इसके चलते देश कमजोर होता है और इससे विनाशकारी शक्तियां लाभान्वित होती हैं.

न्यायालय ने कहा, ‘हमारे संविधान के तहत सभी को स्वतंत्रता का अधिकार है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि लोग डर या लालच के कारण नहीं, बल्कि अपमान की वजह से दूसरे धर्म को अपनाते हैं, उन्हें लगता है कि दूसरे धर्मों में उन्हें सम्मान मिलेगा. इसमें कोई बुराई नहीं है और भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को सम्मान के साथ जीवन जीने का अधिकार है. जब किसी व्यक्ति को अपने घर में सम्मान नहीं मिलता और उसकी उपेक्षा की जाती है तो वह घर छोड़ देता है.’

हाईकोर्ट ने आगे कहा, ‘जैसा कि अतीत का इतिहास बताता है कि जब हम (भारत के लोग) विभाजित हुए, देश पर आक्रमण किया गया और हम गुलाम बन गए. भारतीय संविधान के निर्माता डॉ. भीम राव आंबेडकर इसका एक अच्छा उदाहरण हैं, जिन्हें अपने प्रारंभिक जीवन में बहुत अपमान सहना पड़ा और इसीलिए उन्होंने अपना धर्म परिवर्तन किया.’

मुकदमे के मुताबिक, 17 नवंबर, 2020 को युवती स्थानीय बाजार गई थीं, लेकिन लौटी नहीं. कुछ समय बाद उनके पिता तलाश में गए और उन्हें स्थानीय लोगों से पता चला कि आरोपी जावेद ने अपने दो सालों के साथ मिलकर उनका (युवती) अपहरण कर लिया है. युवती के पिता ने स्थानीय पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई.

आरोप है कि जावेद पहले से शादीशुदा हैं, लेकिन उन्होंने युवती का अपहरण किया और शादी के उद्देश्य से बलपूर्वक उनका धर्म परिवर्तन किया, जो कि उत्तर प्रदेश गैर-कानूनी धर्म परिवर्तन निषेध कानून की धारा 5 (1) के तहत निषिद्ध है.

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