दहेज हत्या: ट्रायल कोर्ट गंभीरता नहीं दिखाता है, इसलिए पति के परिजन बेवजह फंसते हैं: सुप्रीम कोर्ट चिंतित

नई दिल्ली। दहेज हत्या के मामलों में अभियुक्तों के बयान दर्ज करते समय अक्सर ट्रायल कोर्ट द्वारा गंभीरता न दिखाने पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता व्यक्त की है। शीर्ष अदालत ने कहा ऐसे मामले में कभी-कभी पति के परिवारवालों को बेवजह फंसाया जाता है। इन टिप्पणियों और इस बारे में दिशानिर्देश जारी करने के साथ ही शीर्ष कोर्ट ने एक मामले में आरोपी को बरी कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश एनवी रमण, जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस सूर्यकांत की पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा-313 के तहत दर्ज होने वाले बयान कई बार आरोपी से पूछताछ किए बिना दर्ज किए जाते हैं। दहेज हत्या के मामले में एक आरोपी को बरी करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धारा-313 के तहत दर्ज होने वाले आरोपी के बयान को सिर्फ प्रक्रियात्मक औपचारिकता नहीं माना जाता चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा है कि धारा-313 आरोपी को उसके खिलाफ मौजूद आपत्तिजनक तथ्यों पर स्पष्टीकरण देने में सक्षम बनाता है। इसलिए अदालत को निष्पक्षता और सावधानी के साथ आरोपी से सवाल पूछा जाना चाहिए। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह दहेज हत्या के खतरों से भलीभांति अवगत है। दहेज हत्या की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ रही हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कभी-कभी पति के परिवार के उन सदस्यों को फंसाया जाता है, जिनकी अपराध में कोई सक्रिय भूमिका नहीं होती है और बल्कि वे दूर भी रहते है। शीर्ष अदालत ने कहा कि ऐसे में अदालतों को सावधानी वाला रवैया अपनाने की जरूरत है।

दहेज हत्या के मामलों का परीक्षण करते समय दुल्हन को जलाने व दहेज की मांग जैसी सामाजिक बुराई को रोकने की विधायी मंशा को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए। इन बातों को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दहेज हत्या के मामले के परीक्षण को लेकर कई दिशानिर्देश जारी किए हैं।

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